अंकिता भंडारी हत्याकांड: अधूरा न्याय या एक निर्णायक मोड़?
उत्तराखंड की शांत वादियों को झकझोर देने वाले अंकिता भंडारी हत्याकांड में आखिरकार कोटद्वार की अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायालय ने अपना फैसला सुना दिया है। रिसॉर्ट मालिक पुलकित आर्य और उसके दो कर्मचारियों – सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता को अंकिता की हत्या का दोषी ठहराया गया है। कोर्ट ने तीनों दोषियों को आजीवन कारावास की सजा के साथ ₹50,000 का जुर्माना भी लगाया है।यह फैसला ढाई साल से अधिक समय तक चली सुनवाई के बाद आया है, जिसने पूरे देश का ध्यान खींचा था। लेकिन क्या यह फैसला सच में न्याय की जीत है? अंकिता के माता-पिता की प्रतिक्रिया तो कुछ और ही कहानी बयां करती है।
एक दर्दनाक घटना की पुनरावृत्ति:
बात है 18 सितंबर 2022 की। पौड़ी जिले के यमकेश्वर में स्थित वनंतरा रिजॉर्ट में रिसेप्शनिस्ट के तौर पर काम करने वाली 19 वर्षीय अंकिता भंडारी अचानक लापता हो गई। छह दिनों बाद, 24 सितंबर 2022 को, उसका शव ऋषिकेश की चीला नहर से बरामद हुआ। इस खबर ने उत्तराखंड सहित पूरे देश को हिला दिया।
जांच में सामने आया कि रिसॉर्ट मालिक पुलकित आर्य और उसके साथियों ने अंकिता पर “स्पेशल सर्विस” देने का दबाव बनाया था। अंकिता ने इसका डटकर विरोध किया, और इसी विरोध की कीमत उसे अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। पुलिस जांच में यह भी सामने आया कि हत्या के बाद दोषियों ने अंकिता के शव को ठिकाने लगाने की कोशिश की थी।
उत्तराखंड सरकार ने इस मामले की गहन जांच के लिए एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया। लगभग 47 गवाहों की गवाही और व्हाट्सएप चैट्स जैसे डिजिटल सबूतों ने इस केस को मजबूती दी, जिसके आधार पर कोर्ट ने तीनों आरोपियों को दोषी करार दिया।
अधूरे न्याय का दंश:
कोर्ट के फैसले के बाद, एक तरफ जहां न्यायपालिका की प्रक्रिया पूरी हुई, वहीं अंकिता के माता-पिता की भावनाएं हमें सोचने पर मजबूर करती हैं। अंकिता की माँ सोनी देवी ने सीधे तौर पर कहा कि उन्हें “अधूरा न्याय” मिला है। उनकी मांग थी कि दोषियों को फाँसी की सजा दी जाए, क्योंकि उनका मानना है कि आजीवन कारावास उनकी बेटी को हुए अन्याय के बराबर नहीं है। एक माँ के लिए, जिसने अपनी बेटी को खोया है, यह भावना स्वाभाविक है। उनके लिए, न्याय का अर्थ केवल दोषियों को सजा देना नहीं, बल्कि उन्हें ऐसी सजा देना है जो उनके दर्द और अंकिता के जीवन के मूल्य के अनुरूप हो।
आगे क्या?
यह फैसला निश्चित रूप से उत्तराखंड के न्यायपालिका के लिए एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। इसने दिखाया कि न्याय की प्रक्रिया धीमी हो सकती है, लेकिन वह अपना काम करती है। हालांकि, पीड़ित परिवार की निराशा इस बात का संकेत है कि न्याय की अवधारणा हर किसी के लिए अलग हो सकती है।
यह मामला केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं था, बल्कि इसने महिलाओं की सुरक्षा, कार्यस्थलों पर उत्पीड़न, और न्याय की पहुँच जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दों को भी उजागर किया। इस फैसले के बाद, यह देखना बाकी है कि क्या यह मामला ऊपरी अदालतों में जाएगा, और क्या अंकिता के माता-पिता अपनी मांग को लेकर आगे भी संघर्ष करेंगे।
फिलहाल, अंकिता भंडारी हत्याकांड का फैसला एक मिश्रित भावना के साथ सामने आया है – न्यायपालिका की जीत, लेकिन पीड़ित परिवार के लिए अधूरा संतोष। यह हमें याद दिलाता है कि न्याय की लड़ाई अक्सर फैसले के बाद भी जारी रहती है।
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